नवग्रहों की शुभता प्राप्ति हेतु संबधित, जप विधान (मन्त्र, विनियोग, न्यास, ध्यानादि सहित) दान, जडी, औषधि स्नान, रत्न, उपरत्न, धातु

Chanting of navagrah including mantra meditation Hari Haratmak

नवग्रहों की शुभता प्राप्ति हेतु संबधित, जप विधान (मन्त्र, विनियोग, न्यास, ध्यानादि सहित) दान, जडी, औषधि स्नान, रत्न, उपरत्न, धातु

“ॐ हरि हर नमो नमःॐ”
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देवब्राह्मणवन्दनादू गुरुवचः संपादनात्प्रत्यहं
साधूनामपि भाषणाच्छुतिर वश्रेयः कथाकारणात्‌।
होमादध्वरदर्शनाच्छुचिमनोभावाज्जपाद्दानतो नो
कुर्वंति कदाचिदेव पुरुषस्यैवं ग्रहः पीडनम्‌॥

अर्थात् देव और ब्राह्मणों की वंदना से तथा गुरु के वाक्य श्रवण करने से , नित्यप्रति साधुओं के संभाषण से और वेदध्यनि सुनने से, उत्तम कथा करने से होम यज्ञों के दर्शन से, शुद्ध मन से तथा भावना जप दानों से ग्रहों की शांति होती है और ग्रह पीडा नहीं करते हैं।

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अशुम ग्रहों में यात्रा आदि करना निषेध है। यदि जन्म राशि से ग्रह दुष्ट स्थान में हो तो रात्रि आदि में फिरना तथा शिकार खेलना, हठ करना, दूर देश में जाना, हाथी घोडे आदि पर चढना, दूसरे के घर में जाना इत्यादि कार्य कादापि नहीं करना चाहिये।

दुष्ट ग्रहों की शांति का प्रकार –

यदि अशुभ ग्रह हो तो शांति जरूर करना योग्य है , कारण , हानि और वृद्धि ग्रहों के ही अधीन हैं, इस वास्ते अवश्य ग्रहों का पूजनादि करे।

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जो ग्रह गोचर से, या अष्टवर्ग से, या दशा से अशुभ हैं वे दान के देने से शुभ होते हैं इसलिए ग्रहों से संबंधित दान अवश्य करना चाहिए।

दान का काल

घटिकाः पञ्च सौरेर्मध्याह्नमेव च।
राहुकेत्वोश्व रात्रौ च जीवे चन्द्रे च संध्ययोः॥
उदये सूर्यशुक्रौ च भौमे च घटिकाद्वये।
समे काले न कर्तव्यं दातृणां प्राणघातकाः॥

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बुध का दान पांच ५ घडी दिन चढे देना चाहिए और शनैश्वर का मध्याह्नकाल में, राहु तथा केतु का रात्रिकाल में, बृहस्पति तथा चंद्रमा का संध्याकाल में, सूर्य तथा शुक्र का सूयोंदयकाल में , मंगल का दो घडी दिन चढे दान करना चाहिए परन्तु विषम काल में दान नहीं करना चाहिए विषमकाल में दिया गया दान प्राणघातक हो सकता है।

(कलियुग में नवग्रह मन्त्र जप संख्या का ४ गुना मन्त्र जाप एवं दशांश हवन का विधान है।)


नवग्रहों की शुभता प्राप्ति हेतु संबधित, जप विधान


सूर्य देवता

अथ विनियोगः

ॐ आकृष्णेति मन्त्रस्य हिरण्यस्तूपाङ्गिरस ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः सूर्यो देवता रजसेति बीजम् वर्तमान इति शक्तिः। सूर्य प्रीतये जपे विनियोगः।

देहाङ्गन्यासः

  • ॐ आकृष्णेन नमः – शिरसि।
  • ॐ रजसा नमः – ललाटे।
  • ॐ व्वर्तमानो नमः – मुखे।
  • ॐ निवेशयन् नमः – हृदये।
  • ॐ अमृतं नमः – नाभौ।
  • ॐ मर्त्यं च नमः – कट्टय्याम।
  • ॐ हिरण्ययेन सविता नमः – ऊर्वोः।
  • ॐ रथेना नमः – जान्वोः।
  • ॐ देवो याति नमः – जंघयो।
  • ॐ भुवनानि पश्यन् नमः – पादयोः॥

अथ् करन्यासः

  • ॐ आकृष्णेन रजसा – अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
  • ॐ व्वर्तमानो निवेशयन् – तर्जनीभ्यां नमः।
  • ॐ अमृतम्मर्त्यचेति – मध्यमाभ्यां नमः।
  • ॐ हिरण्ययेन् – अनामिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ सविता रथेनेति – कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ देवो याति भुवनानि पश्यन्निति – करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः॥

अथ् हृदयादि न्यासः

  • ॐ आकृष्णेन रजसा – हृदयाय नमः।
  • ॐ व्वर्तमानो निवेशयन् – शिरसे स्वाहा।
  • ॐ अमृतम्मर्त्यचेति – शिखायै वषट्।
  • ॐ हिरण्ययेन् – कवचाय हुम्।
  • ॐ सविता रथेनेति – नेत्रत्रयाय वौषट्।
  • ॐ देवो याति भुवनानि पश्यन्निति – अस्त्राय फट्॥

अथ ध्यानम्

पद्मासनः पद्मकरो द्विबाहुः पद्मद्युतिः सप्ततुरङ्गवाहनः।
दिवाकरो लोकगुरुः किरीटो मयि प्रसादं विदधातु देवः॥

जप मन्त्र –

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ आकृष्णेनरजसाव्वर्त्तमानो निवेशयनन्नमृतम्मर्त्यश्च हिरण्ययेन सविता रथेनादेवो याति भुवनानि पश्यन्न ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः ह्रौं ह्रीं ह्रां ॐ सूर्याय नमः।

एकाक्षरी बीज मंत्र – ॐ घृणिः सूर्याय नमः।

तान्त्रिक मन्त्र – ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।

पुराणोक्त मन्त्र –

ओं ग्रहाणामादिरादित्यो लोकरक्षणकारकः।
विषमस्थानसम्भूतां पीडां हरतु ते रविः॥

जप संख्या – ७००० सप्तसहस्त्राणि

जप समय – सूर्योदय काल।

सूर्य गायत्री – ॐ आदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमहि, तन्नोः सूर्यः प्रचोदयात्॥

समर्पण – अनेन यथा संख्य ______ जप कर्मणा श्री सूर्यदेवता प्रीयताम्।

ध्यातव्य – जपान्ते अर्कसमित्तिलपायसघृतेर्द्दशांश होम, तद्दशांशेन तर्पण, तद्दशांशेन मार्जन, तद्दशांशेन ब्राह्मण भोजनम्॥

दान –

माणिक्यगोधूमसवत्सधेनुः कौसुम्भवासो गुडहेम ताम्रम।
आरक्तकं चन्दनमम्बुजश्च वदन्ति दानं हि प्रदोप्तधाम्ने॥

(माणिक्य, गोधूम, गेहूं, धेनु, कमल, गुड़, ताम्र, लाल कपड़े, लाल पुष्प, लाल चन्दन, एवम स्वर्ण। यदि सूर्य कुप्रभाव दे रहा है तो अपने वजन के बराबर गेहूं किसी रविवार को बहती नदी में बहा देना चाहिए अथवा गुड़ बहते पानी में बहा देना हितकर है।)

जड़ – सूर्य के कुप्रभाव को दूर करने के लिए बेलपत्र की जड़ गुलाबी धागे में रविवार को धारण करना लाभप्रद है।

औषधि स्नान – सूर्य से संबंधित दोष को दूर करने के लिए बेल के पेड़ की जड़, मुलेठी, इलायची, केसर, लाल रंग के फूल आदि को मिलाकर स्नान करें।

हवन हेतु समिधा – अर्क (आकडा)

प्रमुख रत्न – माणिक्य।

उपरत्न – लाल रक्तमणि।

धातु – ताम्र (ताँबा)।


चन्द्र देवता


अथ् विनियोगः

ॐ अस्य श्री इमन्देवेतिमन्त्रस्य गौतम ऋषिः, सोमो देवता, विराट् छन्दः, सोमप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

अथ् देहाङ्गन्यासः

  • ॐ इमं देवा नमः – शिरसि।
  • ॐ असपत्न ᳬ नमः – ललाटे।
  • ॐ सुवध्वं नमः – नासिकायाम्।
  • ॐ महते क्षत्राय नमः- मुखे।
  • ॐ महते ज्येष्ट्याय नमः – हृदये।
  • ॐ मह्ते जानराज्याय नमः – उदरे।
  • ॐ इन्द्रस्येन्द्रियाय नमः – नाभौ।
  • ॐ इमममुष्यम् पुत्रममुष्ये नमः – मेदूळे।
  • ॐ पुत्रमस्ये नमः – ऊर्वोः।
  • ॐ विशष वो नमः – जान्वोः।
  • ॐ मीराजा नमः – जंघयोः।
  • ॐ सोमोऽस्माकं नमः – गुल्फयोः।
  • ॐ ब्राह्मणाना ᳬ राजा नमः – पादयोः॥

अथ् करन्यासः

  • ॐ इमन्देवाऽअसपत्न ᳬ सुवध्वं – अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
  • ॐ महते क्षत्राय महते ज्येष्ठय्याय – तर्जनीभ्यां नमः।
  • ॐ मह्ते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय – मध्यमाभ्यां नमः।
  • ॐ इमममुष्य पुत्रममुष्ये पुत्रमस्ये – अनामिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ विशएष वो मीराजा – कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ सोमोऽ स्माकं ब्राह्मणाना ᳬ राजा – करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः॥

अथ् हृदयादि न्यासः

  • ॐ इमन्देवाऽअसपत्न ᳬ सुवध्वं – हृदयाय नमः।
  • ॐ महते क्षत्राय महते ज्येष्ठयाय – शिरसे स्वाहा।
  • ॐ मह्ते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय – शिखायै वषट्।
  • ॐ इमममुष्य पुत्रममुष्ये पुत्रमस्ये – कवचाय हुम्।
  • ॐ विशएष वो मीराजा – नेत्रत्रयाय वौषट्।
  • ॐ सोमोऽ स्माकं ब्राह्मणाना ᳬ राजा – अस्त्राय फट्॥

अथ ध्यानम्

श्वेताम्बरः श्वेतविभूषणश्च श्वेतद्युतिर्दण्डधरो द्विबाहुः।
चन्द्रोऽमृतात्मा वरदः किरीटी मयि प्रसादं विदधातु देवः॥

जप मन्त्र –

ॐ श्रीं श्रीं श्रीं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ इमन्देवाआसपत्ना ᳬ सुवध्वम्महते क्षत्राय महते ज्येष्ठयाय महते जानराज्ज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इममुख्य पुत्रामाख्ये पुत्रमस्ये व्विशएष वोऽमीराजा सोमोस्माकम्ब्राह्मणाना ᳬ राजा ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः श्रीं श्रीं श्रीं ॐ सोमाय नमः।

एकाक्षरी बीज मंत्र – ॐ सों सोमाय नमः।

तान्त्रिक मन्त्र – ॐ श्रां श्रीं श्रौं चन्द्रमसे नम:।

पुराणोक्त मन्त्र –

ओं रोहिणीशः सुधामूर्तिः सुधागात्रः सुधाशनः।
विषमस्थानसम्भूतां पीड़ां हरतु मे विधुः॥

जप संख्या – ११००० एकादशसहस्त्राणि

जप समय – सायंकाल।

चन्द्र गायत्री – ॐ अत्रिपुत्राय विद्महे सागरोद्भवाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात्॥

समर्पण – अनेन यथा संख्य ______ जप कर्मणा श्री चन्द्र देवता प्रीयताम्।

ध्यातव्य –

जपान्ते पलाशसमित्तिलपायसघृतैर्द्दंशांशहोमः, तद्दशांशेन तर्पण, तद्दशांशेन मार्जन, तद्दशांशेन ब्राह्मण भोजनम्॥ (अन्यत्सर्वं पूर्ववत्)

दान –

सद्वंशपात्रस्थिततण्डुलांश्व कर्पूरमुक्ताफलशुभ्रवस्रम्‌
युगोपयुक्तं वृषभं च रौप्यं चन्द्राय दद्याड्‌ घृतपूर्णकुम्भम्‌ ॥

(श्वेत वस्त्र, चावल, सफेद पुष्प, शकर, कर्पूर, मोती, चांदी, शंख, घृतपूर्ण, कुंभ, मिश्री, दूध-दही, स्फटिक आदि।)

जड़ – चन्द्र की शुभता पाने और कुप्रभाव दूर करने हेतु खिरनी की जड धारणा करना लाभप्रद।

औषधि स्नान – चन्द्रमा संबंधित दोष दूर करने के लिए, पंचगव्य, खिरनी की जड़, श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प मिश्रित जल से स्नान करें।

हवन हेतु समिधा – पलाश।

प्रमुख रत्न – श्वेत मोती।

धातु – चाँदी।


भौम देवता


अथ् विनियोगः

ॐ अग्निर्मूर्द्धेतिमन्त्रस्य विरुपाङ्गिरस ऋषिः अग्निर्देवता, गायत्री छन्दः ककुद्वर्बीजम भौम प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

अथ् देहाङ्गन्यासः

  • ॐ अग्निः नमः – शिरसि।
  • ॐ मूर्द्धा नमः – ललाटे।
  • ॐ दिवः नमः – मुखे।
  • ॐ ककुत् नमः- हृदये।
  • ॐ पतिः नमः – उदरे।
  • ॐ पृथिव्या नमः – नाभौ।
  • ॐ अय नमः – कट्टय्याम्
  • ॐ अपाᳬ नमः – जान्वोः।
  • ॐ रेताᳬ सि नमः – गुल्फयोः।
  • ॐ जिन्वति नमः- पादयोः॥

अथ् करन्यासः

  • ॐ अग्निमूर्द्धा – अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
  • ॐ दिवः ककुदिति – तर्जनीभ्यां नमः।
  • ॐ पति – मध्यमाभ्यां नमः।
  • ॐ पृथिव्याऽअयमिति – अनामिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ अपाᳬ रेताᳬ सिति – कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ जिन्वतीति – करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः॥

अथ् हृदयादि न्यासः

  • ॐ अग्निमूर्द्धेति – हृदयाय नमः।
  • ॐ दिवः ककुदिति – शिरसे स्वाहा।
  • ॐ पतिः – शिखायै वषट्।
  • ॐ पृथिव्याऽअयमिति – कवचाय हुम्।
  • ॐ अपाᳬ रेताᳬ सिति – नेत्रत्रयाय वौषट्।
  • ॐ जिन्वतीति – अस्त्राय फट्॥

अथ ध्यानम्

रक्ताम्बरो रक्तवपुः किरीटोः चतुर्भुजो मेषगतो गदाभृत।
धरासुतः शक्तिधरश्च शूली सदायमस्मद्वरदः प्रसन्नः॥

जप मन्त्र –

ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ अग्निमूर्द्धादिवः ककुत्पतिः पृथिव्व्याऽअयम् अपा ᳬ रेताँ ᳬ सिजिन्वति ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः क्रौं क्रीं क्रां भौमाय नमः।

एकाक्षरी बीज मंत्र – ॐ ॐ अंगारकाय नम:।

तान्त्रिक मन्त्र – ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः।

पुराणोक्त मन्त्र –

ओं भूमिपुत्रो महातेजा जगतां भयकृत्सदा।
वृष्टिकृद वृष्टिहर्ता च पीडां हरतु ते कुजः॥

जप संख्या – १०००० दशसहस्त्राणि।

जप समय – दिन का प्रथम प्रहर।

भौम गायत्री –

(१) ॐ क्षितिपुत्राय विद्महे लोहिताङ्गाय धीमहि तन्नोः भौमः प्रचोदयात्॥
(२) ॐ अंगारकाय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि, तन्नोः भोमः प्रचोदयात्॥

समर्पण – अनेन यथा संख्य ______ जप कर्मणा श्री भौमदेवता प्रीयताम्।

ध्यातव्य – खदिरसमित्तिलपायसघृतैर्द्दंशांशहोमः, तद्दशांशेन तर्पण, तद्दशांशेन मार्जन, तद्दशांशेन ब्राह्मण भोजनम्॥ (अन्यत्सर्वं पूर्ववत्)

दान –

प्रवालगोधूममसूरिकाश्व वृषो‍ऽरुणश्वापि गुडः सुवर्णम्‌ ।
आरक्तवस्त्रं करवीरपुष्पं ताभ्रं च भौमाय वंदति दानम्‌ ॥

(प्रवाह, गेहूं, मसूर, लाल वस्त्र, गुड़, सुवर्ण ताम्र।)

उपाय – मंगल ग्रह अच्छा फल न दे रहा हो तो मीठी रोटियां जानवरों को खिलाएं। मंगलवार के दिन मीठा भोजन दान करें या बताशा नदी में बहाएं।

जड़ – मंगल की शुभता पाने और कुप्रभाव दूर करने हेतु अनंतमूल की जड़ लाल डोरे में मंगलवार को धारण करें।

औषधि स्नान – मंगल की पीड़ा शांत करने के लिए अनंतमूल, रक्त चंदन, लाल फूल मिश्रित जल से स्नान करें।

हवन हेतु समिधा – खैर।

प्रमुख रत्न – मूंगा।

धातु – ताँबा


बुध देवता


अथ् विनियोगः

ॐ उद्बुध्यस्वेति मन्त्रस्य परमेष्ठी प्रजापतिः ऋषि बृहतीछन्दः बुधो देवता त्वामिष्टापूर्तेसमीति बीजम् बुध प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

अथ देहाङ्गन्यासः

  • ॐ उद्बुध्यस्वेति नमः – शिरसि।
  • ॐ अग्ने प्रति नमः – ललाटे।
  • ॐ जागृहि त्व नमः – मुखे।
  • ॐ इष्टापूर्ते नमः – हृदये।
  • ॐ सᳬ सृजयेथामयंञ्ज नमः – नाभौ।
  • ॐ अस्मिन्त्सधस्थे नमः – कट्टय्याम।
  • ॐ अध्युत्तरस्मिन नमः – ऊर्वोः।
  • ॐ विश्वेदेवा नमः – जान्वोः।
  • ॐ यजमानश्च नमः – गुल्फयोः।
  • ॐ सीदत नमः – पादयोः॥

अथ् करन्यासः

  • ॐ उद्बुध्यस्वाग्रेप्रतिजागृहित्वम् – अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
  • ॐ इष्टापूर्ते – तर्जनीभ्यां नमः।
  • ॐ सᳬ सृजयेथामयञ्ज – मध्यमाभ्यां नमः।
  • ॐ अस्मिन्त्सधस्थेऽअध्युत्तरस्मिन् – अनामिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ विश्वेदेवायजमानश्च – कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ सीदत – करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः॥

अथ् हृदयादि न्यासः

  • ॐ उद्बुध्यस्वाग्रेप्रतिजागृहित्वम् – हृदयाय नमः।
  • ॐ इष्टापूर्ते – शिरसे स्वाहा।
  • ॐ सᳬ सृजयेथामयञ्ज – शिखायै वषट्।
  • ॐ अस्मिन्त्सधस्थेऽअध्युत्तरस्मिन् – कवचाय हुम्।
  • ॐ विश्वेदेवायजमानश्च – नेत्रत्रयाय वौषट्।
  • ॐ सीदत – अस्त्राय फट्॥

अथ ध्यानम्

पीताम्बरः पीतवपुः किरीटी चतुर्भुजो दण्डधरश्च हारी।
चर्मासिधृक् सोमसुतः सदा मे सिंहाधिरूढो वरदो बुधश्च॥

जप मन्त्र –

ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ उद्बुध्यस्वाग्रेप्प्रति जागृहित्वमिष्टापूर्तेसं ᳬ सृजयेथामयंञ्च अस्मिन्त्सधस्थेऽअध्युत्तरस्मिन विश्वेदेवायजमानश्चसीदत ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः ब्रौं ब्रीं ब्रां ॐ बुधाय नमः।

एकाक्षरी बीज मंत्र – ॐ बुं बुधाय नमः।

तान्त्रिक मन्त्र – ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः।

पुराणोक्त मन्त्र –

ओं उत्पातरूपो जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युतिः।
सूर्यप्रियकरो विद्वान पीडां हरतु ते बुधः॥

जप संख्या – ९००० नवम सहस्त्राणि।

जप समय – मध्याह्न काल।

बुध गायत्री –

(१) ॐ चन्द्रपुत्राय विद्महे रोहिणीप्रियाय धीमहि तन्नोः बुधः प्रचोदयात्॥

(२)ॐ सौम्यरुपाय विधमहे वानेशाय च धीमहि, तन्नो सौम्य प्रचोदयात्॥

समर्पण – अनेन यथा संख्य ______ जप कर्मणा श्री बुध देवता प्रीयताम्।

ध्यातव्य – अपामार्गसमित्तिलपायसघृतैर्द्दंशांशहोमः, तद्दशांशेन तर्पण, तद्दशांशेन मार्जन, तद्दशांशेन ब्राह्मण भोजनम्॥ (अन्यत्सर्वं पूर्ववत्)

दान –

चैलं च नीलं कलधौतकांस्यं मुद्राज्यगारुत्मतसर्वपुष्पम्‌ ।
दासी च दंतो द्विरदस्य नूनं वदंति दानं विधुनन्दनाय ॥

(मूंग, हरा वस्त्र, सुवर्ण, कांस्य।)

उपाय – यदि बुध कुप्रभाव दे रहा है तो साबुत मूंग बुधवार को नदी या बहते पानी में बहाएं।

जड़ – बुध की की शुभता पाने और कुप्रभाव दूर करने हेतु विधारा की जड़ हरे धागे में बुधवार को धारण करें।

औषधि स्नान – बुधदेव की कृपा पाने और उनसे संबंधित कुंडली के दोष को दूर करने के लिए मधु, विधारा, जायफल मिश्रित जल से स्नान करें।

हवन हेतु समिधा – अपामार्ग।

प्रमुख रत्न – पन्ना।

धातु – कांस्य।


गुरु देवता


अथ् विनियोगः

ॐ बृहस्पतेतिमन्त्रस्य गृत्समद ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः ब्रह्मा देवता बृहस्पतिप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

अथ् देहाङ्गन्यासः

  • ॐ बृहस्पते नमः – शिरसि।
  • ॐ अतियदर्य्यो नमः – ललाटे।
  • ॐ अर्हाद्युमद् नमः – मुखे।
  • ॐ विभतिक्रतुमद् नमः – हृदये।
  • ॐ जनेषु नमः – नाभौ।
  • ॐ यद्दीदयत् नमः – कट्टय्याम।
  • ॐ च्छ्वसऽॠतप्प्रजात नमः – ऊर्वोः।
  • ॐ दस्मासुद्रविणं नमः – जान्वोः।
  • ॐ धेहि नमः – गुल्फयोः।
  • ॐ चित्रं नमः – पादयोः।

अथ् करन्यासः

  • ॐ बृहस्पतेऽअतियदर्य्यो नमः – अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
  • ॐ अर्हाद्युमदिति – तर्जनीभ्यां नमः।
  • ॐ विभतिक्रतुमदिति – मध्यमाभ्यां नमः।
  • ॐ जनेषु – अनामिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ यद्दीदयच्छ्वसऽॠतप्प्रजाततदस्मासु – कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ द्रविणंधेहिचित्रमिति – करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः॥

अथ् हृदयादि न्यासः

  • ॐ बृहस्पतेऽअतियदर्य्यो नमः – हृदयाय नमः।
  • ॐ अर्हाद्युमदिति – शिरसे स्वाहा।
  • ॐ विभतिक्रतुमदिति – शिखायै वषट्।
  • ॐ जनेषु – कवचाय हुम्।
  • ॐ यद्दीदयच्छ्वसऽॠतप्प्रजाततदस्मासु – नेत्रत्रयाय वौषट्।
  • ॐ द्रविणंधेहिचित्रमिति – अस्त्राय फट्॥

अथ् ध्यानम्

पीताम्बरः पीतवपुः किरीटी चतुर्भुजो देवगुरुः प्रशान्तः।
दधाति दण्डञ्च कमण्डलुञ्च तथाक्षसूत्रं वरदोऽस्तु मह्यम्॥

अथ् जप मन्त्र –

ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ बृहस्पतेऽअति यदर्योऽअर्हाद्युम द्विभातिक्रतुमज्जनेषु यद्दीदयच्छ्वसऽॠतप्प्रजात तदस्मासुद्रविणंधेहिचित्रम् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः ग्रौं ग्रीं ग्रां बृहस्पतये नमः।

एकाक्षरी बीज मंत्र – ॐ बृं बृहस्पतये नमः।

तान्त्रिक मन्त्र – ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः।

पुराणोक्त मन्त्र –

ओं देवमन्त्री विशालाक्षः सदालोकहिते रतः।
अनेकशिष्य सम्पूर्णः पीडां हरतु ते गुरुः॥

जप संख्या – १९००० एकोनविंशति सहस्त्राणि।

जप समय – प्रातःकाल।

बृहस्पति गायत्री –

(१) ॐ अंगिरोजाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नोः गुरुः प्रचोदयात्॥

(२) ॐ अन्गिर्साय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि, तन्नोः जीवः प्रचोदयात्॥

समर्पण – अनेन यथा संख्य ______ जप कर्मणा श्री गुरुदेवता प्रीयताम्।

ध्यातव्य – अश्वत्थसमित्तिलपायसघृतैर्द्दंशांशहोमः, तद्दशांशेन तर्पण, तद्दशांशेन मार्जन, तद्दशांशेन ब्राह्मण भोजनम्॥ (अन्यत्सर्वं पूर्ववत्)

दान –

शर्करा च रजनी तुरंगमः पीतधान्यमपि पीतमंबरम्‌ ।
पुष्परागलवणं सकांचनं प्रीयते सुरगुरोः प्रदीयते ॥

(अश्व, शर्करा, हल्दी, पीला वस्त्र, पीतधान्य, पुष्पराग, लवण।)

उपाय – यदि बृहस्पति ग्रह कुफल दे रहा है तो गुरुवार को नाभि या जिह्वा पर केसर लगाएं अथवा केसर का भोजन में सेवन करें।

जड़ – बृहस्पति की शुभता पाने और कुप्रभाव दूर करने हेतु नारंगी या केले की जड़ पीले धागे में वीरवार को धारण करें।

औषधि स्नान – देव गुरु बृहस्पति संबंधित दोष दूर करने के लिए और उनकी शुभता प्राप्त करने के लिए भारंगी, मालती का फूल, सफेद सरसों, गूलर मिश्रित जल से स्नान करें

हवन हेतु समिधा – अश्वत्थ (पीपल)

प्रमुख रत्न – पुखराज।

धातु – स्वर्ण।


शुक्र देवता


अथ विनियोगः

ॐ अत्रात्परिस्त्रुतेति मन्त्रस्य प्रजापति ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः (शव्करीछन्दसे) शुक्रो देवता रसं ब्रह्मणा इति बीजम् शुक्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

अथ देहाङ्गन्यासः

  • ॐ अत्रात्परिस्त्रुत नमः – शिरसि।
  • ॐ रसं ब्रह्मणा नमः – ललाटे।
  • ॐ व्यपिबत् नमः – मुखे।
  • ॐ पयः सोमं नमः – हृदये।
  • ॐ प्रजापति नमः – नाभौ।
  • ॐ ऋतेन सत्यं नमः – कट्टय्याम।
  • ॐ इंद्रियंव्विपानᳬ नमः – गुह्ये।
  • ॐ शुँक्रमंधस नमः – ऊर्वोः।
  • ॐ इन्द्रस्येंद्रियम् नमः – जानुनोः।
  • ॐ इदं पयः नमः – गुल्फयोः।
  • ॐ अमृतं मधु नमः – पादयोः।

अथ् करन्यासः

  • ॐ अत्रात्परिस्त्रुतो रसं इति – अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
  • ॐ ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं इति – तर्जनीभ्यां नमः।
  • ॐ पयः सोमं प्रजापतिः इति – मध्यमाभ्यां नमः।
  • ॐ ऋतेनसत्यमिंद्रियं इति – अनामिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ व्विपानᳬ शुँक्रमंधसः – कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ इन्द्रस्येंद्रियमिदंयोमृतंमधु इति – करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः॥

अथ् हृदयादि न्यासः

  • ॐ अत्रात्परिस्त्रुतो रसं इति – हृदयाय नमः।
  • ॐ ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं इति – शिरसे स्वाहा।
  • ॐ पयः सोमं प्रजापतिः इति – शिखायै वषट्।
  • ॐ ऋतेनसत्यमिंद्रियं इति – कवचाय हुम्।
  • ॐ व्विपानᳬ शुँक्रमंधसो इति – नेत्रत्रयाय वौषट्।
  • ॐ इन्द्रस्येंद्रियमिदंयोमृतम्मधु इति – अस्त्राय फट्॥

अथ ध्यानम्

श्वेताम्बर: श्वेतवपुः किरीटी चतुर्भुजो दैत्यगुरुः प्रशान्तः।
तथाक्षसूत्रञ्च कमण्डलुञ्च जयञ्च बिभ्रद्वरदोऽस्तु मह्मम्॥

जप मन्त्र –

ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ अत्रात्परिस्त्रुतोरसं ब्रह्मणाव्यपिबत् क्षत्रम्पयः सोमम्प्रजापतिः ऋतेनसत्य मिंद्रियं व्विपानᳬ शुँक्रमंधसऽइन्द्रस्येंद्रिय मिदम्पयो मृतम्मधु ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः द्रौं द्रीं द्रां शुक्राय नमः।

एकाक्षरी बीज मंत्र – ॐ शुं शुक्राय नमः।

तान्त्रिक मन्त्र – ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः।

पुराणोक्त मन्त्र –

ओं दैत्यमन्त्री गुरुस्तेषां प्राणदश्च महामतिः।
प्रभुस्ताराग्रहाणाश्च पीडां हरतु ते भृगुः॥

जप संख्या – १६००० षोडश सहस्त्राणि।

जप समय – ब्रह्मवेला।

शुक्र गायत्री –

(१) ॐ भृगुवंशजाताय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि तन्नोः शुक्रः प्रचोदयात्॥

(२) ॐ भ्रगुजायाय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि, तन्नो शुक्रः प्रचोदयात्॥

समर्पण – अनेन यथा संख्य ______ जप कर्मणा श्री शुक्रदेवता प्रीयताम्।

ध्यातव्य – औदुम्बरसमित्तिलपायसघृतैर्द्दंशांशहोमः, तद्दशांशेन तर्पण, तद्दशांशेन मार्जन, तद्दशांशेन ब्राह्मण भोजनम्॥ (अन्यत्सर्वं पूर्ववत्)

दान –

चित्रांबरं शुभ्रतुरंगमं च धेनुश्च वज्रं रजतं सुवर्णम्‌ ।
सत्तंडुलानुत्तमगंधयुक्तं वदंति दानं भुगुनंदनाय ॥

(धेनु, हीरा, रौप्य, सुवर्ण, सुगंध, घी।)

उपाय – यदि शुक्र अशुभ फल दे रहा हो तो गाय का दान अथवा पशु आहार का दान करें, पशु आहार को नदी में बहाएं।

जड़ – शुक्र की शुभता पाने और कुप्रभाव दूर करने हेतु सरपोंखा की जड़ सफेद धागे में शुक्रवार को धारण करें।

औषधि स्नान – शुक्र की शुभता प्राप्त करने और शुक्र संबंधित दोषों को दूर करने के लिए इलायची, जायफल, मूली के बीज मिश्रित जल से स्नान करें।

हवन हेतु समिधा – औदुम्बर

प्रमुख रत्न – हीरा।

धातु – चाँदी।


शनि देवता


अथ् विनियोगः

ॐ शन्नोदेवीरिति मन्त्रस्य सिन्धुद्वीप ऋषिः गायत्री छन्दः शनिर्देवता आपो बीजम् वर्तमान इति शक्तिः शनैश्वरप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

अथ् देहाङ्गन्यासः

  • ॐ शन्नो नमः – शिरसि।
  • ॐ देवीः नमः – ललाटे।
  • ॐ अभिष्टय नमः – मुखे।
  • ॐ आपो नमः – कण्ठे।
  • ॐ भवन्तु नमः – हृदये।
  • ॐ पीतये नमः – नाभौ।
  • ॐ शं नमः- कट्टय्याम।
  • ॐ योः नमः – ऊर्वोः।
  • ॐ अभि नमः- जान्वोः।
  • ॐ स्त्रवंतु नमः – गुल्फयोः।
  • ॐ नः नमः – पादयोः॥

अथ् करन्यासः

  • ॐ शन्नोदेवीरिति – अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
  • ॐ अभिष्टये – तर्जनीभ्यां नमः।
  • ॐ आपोभवन्तु – मध्यमाभ्यां नमः।
  • ॐ पीतये – अनामिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ शंय्योरभिति – कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
  • ॐ स्त्रवंतुनः – करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः।

अथ् हृदयादि न्यासः

  • ॐ शन्नोदेवीरिति – हृदयाय नमः।
  • ॐ अभिष्टये – शिरसे स्वाहा।
  • ॐ आपोभवन्तु – शिखायै वषट्।
  • ॐ पीतये – कवचाय हुम्।
  • ॐ शंय्योरभिति – नेत्रत्रयाय वौषट्।
  • ॐ स्त्रवंतुनः – अस्त्राय फट्।

अथ् ध्यानम्

नीलद्युतिः शूलधरः किरीटी गृध्रस्‍थितस्त्राणकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रशान्तो वरप्रदो मेऽस्तु स मन्दगामी॥

अथ् जप मन्त्र –

ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः ॐ शन्नो देवीरभिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवंतुनः ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः प्रौं प्रीं प्रां शनिश्चराय नमः।

एकाक्षरी बीज मंत्र- ॐ शं शनैश्चराय नमः।

तान्त्रिक मन्त्र – ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।

पुराणोक्त मन्त्र – ओं सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्षः शिवप्रियः। मन्दचारः प्रसन्नात्मा पीडां हरतु ते शनिः॥

जप संख्या – २३००० त्रयोविंशतिसहस्त्राणि।

जप समय – संध्याकाल।

शनि गायत्री – ॐ भग्भवाय विधमहे मृत्युरुपाय धीमहि, तन्नो सौरिः प्रचोदयात्॥

जप समर्पणम् – अनेन यथा संख्य ______ जप कर्मणा श्री शनिदेवता प्रीयताम्।

ध्यातव्य – शमीसमित्तिलपायसघृतैर्द्दंशांशहोमः, तद्दशांशेन तर्पण, तद्दशांशेन मार्जन, तद्दशांशेन ब्राह्मण भोजनम्॥ (अन्यत्सर्वं पूर्ववत्)

दान –

माषाश्व तैल विमलेंद्रनीलं तिलाः कुलित्था महिषी च लोहम्‌ ।
कृष्णा च धेनुः प्रवदन्ति नूनं दुष्टाय दानं रविनंदनाय॥

(काला तिल, तेल, कुलित्‍थ, महिषी, श्याम वस्त्र।)

उपाय – यदि शनि दोष है तो काला उड़द शनिवार को नदी में बहाएं या शनिवार को तेल का दान करें।

जड – शनि की शुभता पाने और कुप्रभाव दूर करने हेतु काले धागे में विच्छू घास की जड को शनिवार के दिन धारण करें।

औषधि स्नान – शनि से संबंधित दोष दूर करने के लिए और उनकी कृपा प्राप्त करने हेतु काला तिल, अमर बेल, सौंफ, सरसों मिश्रित जल से स्नान करें।

हवन हेतु समिधा – शमी

प्रमुख रत्न – नीलम।

धातु – लोहा।


राहू देवता


अथ विनियोगः

ॐ कया नश्चत्रेति मन्त्रस्य वामदेव ऋषिः गायत्रीछन्दः राहुर्देवता कयान इति बीजम् शचिरिति शक्तिः श्री राहू प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

अथ् ऋष्यादि न्यासः

  • ॐ कया नमः – शिरसि।
  • ॐ न नमः – ललाटे।
  • ॐ चित्र नमः – मुखे।
  • ॐ आ नमः – कण्ठे।
  • ॐ भुव नमः – हृदये।
  • ॐ दूती नमः – नाभौ।
  • ॐ सदा नमः – कट्टय्याम।
  • ॐ वृधः नमः – मेढे।
  • ॐ सखा नमः – ऊर्वोः।
  • ॐ कया नमः – जान्वोः।
  • ॐ शचिष्ठया नमः – गुल्फयोः।
  • ॐ वृता नमः – पादयोः॥

अथ् करन्यासः

  • ॐ कयानः इति – अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
  • ॐ चित्र आ इति – तर्जनीभ्यां नमः।
  • ॐ भुव दूती इति – मध्यमाभ्यां नमः।
  • ॐ सदावृधः सखा इति – अनामिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ कया इति – कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ शचिष्ठयावृता इति – करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः॥

अथ् हृदयादि न्यासः

  • ॐ कयानः इति – हृदयाय नमः।
  • ॐ चित्र आ इति – शिरसे स्वाहा।
  • ॐ भुव दूति इति – शिखायै वषट्।
  • ॐ सदावृधः सखा इति – कवचाय हुम्।
  • ॐ कया इति – नेत्रत्रयाय वौषट्।
  • ॐ शचिष्ठयावृता इति – अस्त्राय फट्॥

अथ् ध्यानम्

नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी करालवक्त्रः करवालशूली।
चतुर्भुजश्चर्मधरश्च राहुः सिंहासनस्थो वरदोऽस्तु मह्यम्॥

अथ् जप मन्त्र – ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः ॐ कया नश्चित्रऽआभुवदूतीसदावृधः सखाकयाशचिष्ठयावृता ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः भ्रौं भ्रीं भ्रां ॐ राहुवे नमः।

एकाक्षरी बीज मंत्र – ॐ रां राहुवे नमः।

तान्त्रिक मन्त्र – ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः।

पुराणोक्त मन्त्र – ओं महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबलः। अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीडां हरतु ते तमः॥

जप संख्या – १८००० अष्टादशःसहस्त्राणि।

जप समय – रात्रिकाल।

राहू गायत्री – ॐ शिरोरुपाय विधमहे अमृतेशाय धीमहि, तन्नो राहूः प्रचोदयात्॥

समर्पण – अनेन यथा संख्य ______ जप कर्मणा श्री राहूदेवता प्रीयताम्।

ध्यातव्य – दूर्वासमित्तिलपायसघृतैर्द्दंशांशहोमः, तद्दशांशेन तर्पण, तद्दशांशेन मार्जन, तद्दशांशेन ब्राह्मण भोजनम्॥ (अन्यत्सर्वं पूर्ववत्)

दान –

गोमेदरत्नं च तुरङ्गमश्च सुनीलचैलामलकम्बलश्च।
तिलाश्च तैलं खलु लोहमिश्रं स्वर्भानवे दानमिदम् प्रदेयम्॥

(गोमेद, अश्व, कृष्णवस्त्र, कम्बल, तिल, तेल, लोहा, अभ्रक।)

उपाय – यदि राहु मंदा है दोषयुक्त है तो वीरवार को मूलियां दान करें अथवा शनिवार के दिन कच्चे कोयले नदी में प्रवाहित करें।

जड़ – राहु की शुभता पाने और कुप्रभाव दूर करने हेतु नीले डोरे में सफेद चंदन की जड बुधवार को धारण करें।

औषधि स्नान – राहु संबंधित दोष को दूर करने के लिए में लोबान, देवदार, कस्‍तूरी, गजदंत मिश्रित जल से स्नान करे।

हवन हेतु समिधा – दूर्वा

प्रमुख रत्न – गोमेद।

धातु – सीसा।


केतु देवता


अथ् विनियोगः

ॐ केतुकृण्वन्निति मन्त्रस्य मधुच्छन्द ॠषिः गायत्री छन्दः केतुर्देवता अपेशसे इति बीजम् मर्य्या शक्तिः केतु प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

अथ् देहाङ्गन्यासः

  • ॐ केतुं नमः – शिरसि।
  • ॐ कृण्वन् नमः – ललाटे।
  • ॐ अकेतवे नमः – मुखे।
  • ॐ पेशो नमः – हृदये।
  • ॐ मर्या नमः – नाभौ।
  • ॐ अपेशसे नमः – कट्टय्याम।
  • ॐ सं नमः – ऊर्वोः।
  • ॐ उषद्भि नमः – जान्वोः।
  • ॐ अजायथाः नमः – पादयोः॥

अथ् करन्यास

  • ॐ केतुकृण्वन्निति इति – अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
  • ॐ अकेतवे इति तर्जनीभ्यां नमः।
  • ॐ पेशोमर्य्या इति – मध्यमाभ्यां नमः।
  • ॐ अपेशसे इति – अनामिकाभ्याम् नमः।
  • ॐ समुषद्भि इति- कनिष्ठकाभ्यां नमः।
  • ॐ अजायथाः इति – करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः॥

अथ् हृदयादि न्यास

  • ॐ केतुकृण्वन्निति इति – हृदयाय नमः।
  • ॐ अकेतवे इति – शिरसे स्वाहा।
  • ॐ पेशोमर्य्या इति – शिखायै वषट्।
  • ॐ अपेशसे इति – कवचाय हुम्।
  • ॐ समुषद्भि इति – नेत्रत्रयाय वौषट्।
  • ॐ अजायथाः इति – अस्त्राय फट्॥

अथ् ध्यानम्

धूम्रो द्विबाहुर्वरदो गदाभृत् गृध्रासनस्थो विकृताननश्च।
किरीटकेयूरविभूषिताङ्ग सदास्तु मे केतुगणः प्रशान्त:॥

अथ् जप मन्त्र –

ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः ॐ केतुं कृण्वन्नंकेतवे पेशोमर्य्याऽअपेशसे समुषद्भिरजायथाःॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः स्रौं स्रीं स्रां ॐ केतवे नमः।

एकाक्षरी बीज मंत्र – ॐ कें केतवे नमः।

तान्त्रिक मन्त्र – ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः।

पुराणोक्त मन्त्र – 

ओं अनेकरूपवर्णेश्च शतशोऽथ सहस्त्रशः।
उत्पातरूपो जगतां पीडां हरतु ते शिखी॥

जप संख्या – १७००० सप्तदशसहस्त्राणि।

जप समय – रात्रिकाल।

केतु गायत्री –

(१) ॐ अत्रदाय विद्महे कपोतवाहनाय धीमहि तन्नोः केतुः प्रचोदयात्॥

(२) ॐ पद्मपुत्राय विदमहे अम्रितेसाय धीमहि तन्नो केतुः प्रचोदयात्।

समर्पण – अनेन यथा संख्य ______ जप कर्मणा श्री केतुदेवता प्रीयताम्।

ध्यातव्य – कुशसमित्तिलपायसघृतैर्द्दंशांशहोमः, तद्दशांशेन तर्पण, तद्दशांशेन मार्जन, तद्दशांशेन ब्राह्मण भोजनम्॥ (अन्यत्सर्वं पूर्ववत्)

दान –

वैडूर्यरत्नं सतिलं च तैलं सुकम्बलं चापि मदो मृगस्य।
शस्त्रं च केतोः परितोषहेतो छायस्य दानं कथितं मुनीन्द्रैः॥

(तिल, कंबल, कस्तूरी, शस्त्र, नीम वस्त्र, तेल, कृष्णपुष्प, छाग, लौहपात्र।)

उपाय – केतू के प्रतिकूल होने पर कुत्ते को रोटी दें।

जड़ – केतु की शुभता पाने और कुप्रभाव दूर करने हेतु अश्वगंधा की जड़ आसमानी रंग के धागे में वीरवार को धारण करें।

औषधि स्नान – केतु के कष्टों से मुक्ति पाने के लिए लोबान, देवदार, लाल चंदन मिश्रित जल से स्नान करें।

हवन हेतु समिधा – कुश

प्रमुख रत्न – लहसुनिया।

धातु – लोहा।

॥ श्रीरस्तु ॥
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श्री हरि हरात्मक देवें सदा, मुद मंगलमय हर्ष।
सुखी रहे परिवार संग, अपना भारतवर्ष ॥
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संकलनकर्ता –
श्रद्धेय पंडित विश्वनाथ द्विवेदी ‘वाणी रत्न’
संस्थापक, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
(‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष संस्थान)
संपर्क सूत्र – 07089434899
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Chanting_of_navagrah_including_mantra_meditation1 नवग्रहों की शुभता प्राप्ति हेतु संबधित, जप विधान (मन्त्र, विनियोग, न्यास, ध्यानादि सहित) दान, जडी, औषधि स्नान, रत्न, उपरत्न, धातु

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