तिथि निर्णय | तिथियों की विभिन्न प्रकार की संज्ञायें | तिथियों के स्वामी | तिथियों के शुभाशुभ फल

꧁❀“ॐ हरि हर नमो नमःॐ”❀꧂

तिथिनिर्णय एवं तिथियों के प्रकार

तिथि निर्णय

चन्द्रमा की एक कला को तिथि माना गया है। इसका चन्द्र और सूर्य के अन्तरांशों पर से मान निकाला जाता है। प्रतिदिन १२ अंशों का अन्तर सूर्य और चन्द्रमा के भ्रमण में होता है, यही अन्तराश का मध्यम मान है। अमावस्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियाँ शुक्लपक्ष की और पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक की तिथियाँ कृष्णपक्ष की होती हैं। ज्योतिषशास्त्र में तिथियों की गणना शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होती है।

(१) प्रतिपदा, (२) द्वितीया, (३) तृतीया, (४) चतुर्थी, (५) पंचमी,
(६) षष्ठी, (७) सप्तमी, (८) अष्टमी, (९) नवमी, (१०) दशमी,
(११) एकादशी, (१२) द्वादशी, (१३) त्रयोदशी, (१४) चतुर्दशी,
(१५) पूर्णिमा, (३०) अमावस्या

तिथियों के स्वामी

तिथियों के शुभाशुभ के अवसर पर स्वामियों का विचार किया जाता है।

(०१) प्रतिपदा तिथि के स्वामी – अग्नि
(०२) द्वितीया तिथि के स्वामी – ब्रह्मा
(०३) तृतीया तिथि के स्वामी – गौरी
(०४) चतुर्थी तिथि के स्वामी – गणेश
(०५) पंचमी तिथि के स्वामी – शेषनाग
(०६) षष्ठी तिथि के स्वामी – कार्तिकेय
(०७) सप्तमी तिथि के स्वामी – सूर्य
(०८) अष्टमी तिथि के स्वामी – शिव
(०९) नवमी तिथि के स्वामी – दुर्गा
(१०) दशमी तिथि के स्वामी – काल
(११) एकादशी तिथि के स्वामी – विश्‍वदेव
(१२) द्वादशी तिथि के स्वामी – विष्णु
(१३) त्रयोदशी तिथि के स्वामी – काम
(१४) चतुर्दशी तिथि के स्वामी – शिव
(१५) पौर्णमासी तिथि के स्वामी – चन्द्रमा
(३०) अमावस्या तिथि के स्वामी – पितर

अमावस्या के भेद

(१) सिनीवाली अमावस्या – प्रातःकाल से लेकर रात्रि तक रहनेवाली अमावस्या को सिनीवाली अमावस्या कहते हैं।
(२) दर्श अमावस्या –
चतुर्दशी से विद्ध अमावस्या को दर्श अमावस्या कहते हैं।
(३) कुहू अमावस्या –
प्रतिपदा से युक्त अमावस्या को कुहू अमावस्या कहते हैं।

तिथियों की संज्ञायें

(१) नंदा तिथि – प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी नंदा तिथि कहलाती हैं। इन तिथियों में अंतिम चौबीस मिनट को छोड़कर सभी प्रकार के शुभ मांगलिक कार्य, भवन निर्माण और व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए यह तिथि विशेष शुभ है।

(२) भद्रा तिथि – प्रत्येक माह के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी को भद्रा तिथि कहते हैं। इन तिथियों में पूजा, व्रत, जप, दान आदि कार्य, तथा अनाज लाना, पशुधन और वाहन खरीदना शुभ होता है। इसके अलावा अदालती कार्य, शल्य चिकित्सा, चुनाव संबंधी कार्य करना शुभ होता है। इसमें शुभ मांगलिक कार्य करने से बचना चाहिए।

(३) जया तिथि – प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की तृतीया, अष्टमी, त्रयोदशी, जया तिथि कहलाती हैं। इन तिथियों में सेना संबंधी कार्य, मुकदमेबाजी, अदालती कार्य निबटाना, वाहन खरीदना, कलात्मक कार्यों जैसे विद्या, गायन, वादन, नृत्य आदि के लिए श्रेयस्कर होती हैं।

(४) रिक्ता तिथि – प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी को रिक्ता तिथि कहते हैं। इन तिथियों में तंत्र-मंत्र की सिद्धि, तीर्थयात्रा शुभ मानी जाती है। इन तिथियों में किसी भी प्रकार के शुभ मांगलिक कार्य, गृहप्रवेश और नये काम आरंभ करने से बचना चाहिए।

(५) पूर्णा तिथि – प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की पंचमी, दशमी, पूर्णिमा, अमावस्या को पूर्णा तिथि कहते हैं। इन तिथियों में अमावस्या को छोड़कर शेष तिथियों में सभी प्रकार के शुभ मांगलिक कार्य करना उत्तम होता है।

(६) पक्षरन्ध्र संज्ञक तिथि – चतुर्थी, षष्ठी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी और चतुर्दशी इन तिथियों को पक्षरन्ध्र संज्ञक तिथियाँ कहते हैं। इनमें उपनयन, विवाह, प्रतिष्ठा गृहारम्भ आदि कार्य करना अशुभ बताया है। यदि इन तिथियों में कार्य करने की अत्यन्त आवश्यकता हो तो इनके प्रारम्भ की पाँच घटिकाएँ अर्थात् दो घण्टे अवश्य त्याज्य हैं। अभिप्राय यह है कि उपर्युक्त तिथियों में सूर्योदय के दो घण्टे बाद कार्य करना चाहिए।

मासशून्य तिथियाँ

मासशून्य तिथियों में कार्य करने से सफलता प्राप्त नहीं होती। १२ मास की मासशून्य संज्ञक तिथियाँ इस प्रकार हैं –

(१) चैत्र में – दोनों पक्षों की अष्टमी और नवमी मासशून्य संज्ञक हैं।
(२) वैशाख में – दोनों पक्षों की द्वादशी मासशून्य संज्ञक हैं।
(३) जेष्ठ में – कृष्णपक्ष की चतुर्दशी और शुक्लपक्ष की त्रयोदशी मासशून्य संज्ञक हैं।
(४) आषाढ़ में – कृष्णपक्ष की षष्ठी और शुक्लपक्ष की सप्तमी मासशून्य संज्ञक हैं।
(५) श्रावण में – दोनों पक्षों की द्वितीया और तृतीया मासशून्य संज्ञक हैं।
(६) भाद्रपद में – दोनों पक्षों की प्रतिपदा और द्वितीया मासशून्य संज्ञक हैं।
(७) आश्विन में – दोनों पक्षों की दशमी और एकादशी मासशून्य संज्ञक हैं।
(८) कार्तिक में – कृष्णपक्ष की पंचमी और शुक्लपक्ष की चतुर्दशी मासशून्य संज्ञक हैं।
(९) मार्गशीर्ष में – दोनों पक्षों की सप्तमी और अष्टमी मासशून्य संज्ञक हैं।
(१०) पौष में – दोनों पक्षों की चतुर्थी और पंचमी मासशून्य संज्ञक हैं।
(११) माघ में – कृष्णपक्ष की पंचमी और शुक्ल पक्ष की षष्ठी मासशून्य संज्ञक हैं।
(१२) फाल्गुन में – कृष्णपक्ष की चतुर्थी और शुक्लपक्ष की तृतीया मासशून्य संज्ञक हैं।

सिद्धा तिथियाँ

सिद्धि देनेवाली तिथियां सिद्धासंज्ञक कहलाती हैं। सिद्धा तिथियों में किये गये कार्य सर्व सिद्धिप्रदायक होते हैं। सिद्धा तिथियाँ इस प्रकार हैं –

(१) मंगलवार को – तृतीया, अष्टमी, त्रयोदशी
(२) बुधवार को – द्वितीया सप्तमी, द्वादशी
(३) बृहस्पतिवार को – पञ्चमी, दशमी, पूर्णिमा
(४) शुक्रवार को – प्रतिपदा, षष्ठी, एकादशी
(५) शनिवार को – चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी

दग्धा संज्ञक तिथियाँ

इन तिथियों में कार्य करने से विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

(१) रविवार को – द्वादशी
(२) सोमवार को – एकादशी
(३) मंगलवार को – पंचमी
(४) बुधवार को – तृतीया
(५) बृहस्पतिवार को – षष्ठी
(६) शुक्रवार को – अष्टमी
(७) शनिवार को – नवमी

विष संज्ञक तिथियाँ

इन तिथियों में कार्य करने से विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

(१) रविवार को – चतुर्थी
(२) सोमवार को – षष्ठी
(३) मंगलवार को – सप्तमी
(४) बुधवार को – द्वितीया
(५) बृहस्पतिवार को – अष्टमी
(६) शुक्रवार को – नवमी
(७) शनिवार को – सप्तमी विष संज्ञक

हुताशन संज्ञक तिथियाँ

इन तिथियों में कार्य करने से विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

(१) रविवार को – द्वादशी
(२) सोमवार को – षष्ठी
(३) मंगलवार को – सप्तमी
(४) बुधवार को – अष्टमी
(५) बृहस्पतिवार को – नवमी
(६) शुक्रवार को – दशमी
(७) शनिवार को – एकादशी हुताशन संज्ञक हैं।

अखंडा एवं खंडा तिथि

जो तिथि सूर्योदय से सूर्यास्त तक व्याप्त रहे वह अखंडा और जो सूर्योदय से दोपहर (दिनमान के आधे भाग) तक न रहे वह खंडा तिथि होती है। खंडा तिथि में व्रत प्रारंभ या उद्यापन नहीं करना चाहिए।

पूर्व विद्धा

आज जिस तिथि पर हम विचार कर रहे हैं यदि वह तिथि पिछली तिथि से पिछले दिन संयुक्त होकर आई हो तो आज की तिथि पूर्व विद्धा कहलाती है। उदाहरण के लिये आज मंगलवार को सूर्योदय के समय एकादशी तिथि है, पिछले दिन (सोमवार को) पिछली (दशमी तिथि) रात १ बजे तक थी। और एकादशी लग गई थी। यानि की दोनों तिथियां पिछले दिन रात १ वजे संयुक्त थीं। अतः यहां एकादशी पूर्व विद्धा कहलायेगी। यह तिथि आने वाले अगले सूर्योदय के पहले ही समाप्त होती है।

पराविद्धा

आज जिस तिथि पर हम विचार कर रहे हैं यदि वह तिथि अगली आने वाली तिथि से अगले आने वाले दिन संयुक्त हो तो आज की तिथि परा विद्धा कहलाती है। यह तिथि आने वाले अगले सूर्योदय के वाद समाप्त होती है।

युक्ता तिथि

किसी एक दिन एक तिथि समाप्त होती है उसी समय दूसरी तिथि प्रारंभ होती है ऐसी स्थिति में दोनों तिथियां परस्पर युक्ता तिथियां होती हैं। उपरोक्त उदाहरण में सोमवार की रात्रि में १ वजे दशमी तथा एकादशी संयुक्त होने से हम यह कहेंगे कि सोमवार को दशमी तथा एकादशी युक्ता तिथियां हैं।

शुद्धा तिथि

‘सूर्योदयारंभ पुनः सूर्योदयपर्यन्ता शुद्धा – तिथिनिर्णय।

अर्थात् जो तिथि सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक रहे वह शुद्धा होती है, अतः स्पष्ट है कि, जो तिथि वृद्धि को प्राप्त होती है, केवल वही शुद्धा हो सकती है, अन्य सब विद्धा होतीं हैं।

॥ श्रीरस्तु ॥
༺❀༻

श्री हरि हरात्मक देवें सदा, मुद मंगलमय हर्ष।
सुखी रहे परिवार संग, अपना भारतवर्ष॥
༺༻༺༻❀༺༻༺༻

┉ संकलनकर्ता ┉
श्रद्धेय पंडित विश्‍वनाथ प्रसाद द्विवेदी
‘सनातनी ज्योतिर्विद’
संस्थापक, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
(‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष)
संपर्क सूत्र – 07089434899
︵︵︵❀꧁●꧂❀︵︵︵

Share this content:

Post Comment

Copyright © 2025 Hari Har Haratmak. All rights reserved.

"enter" 2025 | Powered By SpiceThemes