श्री त्रैलोक्य विजया अपराजिता स्तोत्रम्
꧁❀“ॐ हरि हर नमो नमःॐ”❀꧂
श्री त्रैलोक्य विजय अपराजिता स्तोत्रम्
अथ विनियोगः
ॐ अस्या: वैष्णव्याः परायाः अजितायाः महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्कण्डेया ऋषयः। गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहति छन्दांसि। लक्ष्मी नृसिंहो देवता। ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजं हुं शक्तिः। सकलकामना सिद्ध्यर्थं अपराजित विद्यामन्त्र पाठे विनियोगः॥
अथ् स्तोत्रम्
ॐ नीलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणान्वितं।
शुद्धस्फटिकसंकाशां चन्द्रकोटिनिभाननां॥१॥
शङ्खचक्रधरां देवीं वैष्णवीं अपराजितं।
बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीं॥२॥
नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः॥३॥
श्री मार्कण्डेय उवाच
श्रृणुष्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम।
असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीं अपराजितं॥४॥
ॐ नमो नारायणाय, नमो भगवते वासुदेवाय, नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्त्रशीर्षायणे, क्षीरोदार्णवशायिने, शेषभोगपर्य्यङ्काय, गरुड़वाहनाय, अमोघाय अजाय अजिताय पीतवाससे।
ॐ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रीव, मत्स्य,कूर्म, वाराह नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर राम राम राम।
वरद वरद वरदो भव, नमोस्तुते, नमोस्तुते स्वाहा,
ॐ असुर-दैत्य-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-पिशाच-कूष्माण्ड-सिद्ध-योगिनी-डाकिनी-शाकिनी-स्कन्द्गृहान उपग्रहान्नक्षत्रग्रहांंश्चान्या हन हन पच पच मथ मथ विध्वंसय विंध्वंसय विद्रावय विद्रावय चूर्णय चूर्णय शंखेन चक्रेण वज्रेण शूलेन गदया मुसलेन हलेन भस्मीकुरु कुरु स्वाहा।
ॐ सहस्त्रबाहो सहस्त्रप्रहरणायुध, जय जय, विजय विजय, अजित, अमित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्त्रनेत्र, ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, विश्वरूप बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्मनाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषिकेश, केशव, सर्वासुरोत्सादन, सर्वभूतवशङ्कर, सर्वदुःस्वप्नप्रभेदन, सर्वयन्त्रप्रभञ्जन, सर्वनागविमर्दन, सर्वदेवमहेश्वर, सर्वबंधविमोक्षण, सर्वाहितप्रमर्दन, सर्व्जवरप्रणाशन, सर्वग्रहनिवारण, सर्वपापप्रशमन, जनार्दन, नमोस्तुते स्वाहा।
ॐ विष्णोरियमानुपप्रोक्ता सर्वकामफलप्रदा।
सर्वसौभाग्यजननी सर्वभीतिविनाशिनी॥५॥
सर्वैंश्च पठितां सिद्धैर्विष्णोः परमवल्लभा।
नानया सदृशं किञ्चिदुष्टानां नाशनं परं॥६॥
विद्या रहस्या कथिता वैष्णव्येषापराजिता।
पठनीया प्रशस्ता वा साक्षात्सत्वगुणाश्रया॥७॥
ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजं।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये॥८॥
अथातः संप्रवक्ष्यामि ह्यभयामपराजितम।
याशक्तिर्मामकी वत्स रजोगुणमयी मता॥९॥
सर्वसत्वमयी साक्षात्सर्वमंत्रमयी च या।
या स्मृता पूजिता जप्ता न्यस्ता कर्मणि योजिता।
सर्वकामदुघा वत्स शृणुष्वैतां ब्रवीमि ते॥१०॥
यस्याः प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि।
भ्रियते बालको यस्याः काकवन्ध्या च या भवेत्॥११॥
धारयेद्या इमां विद्यामेतैर्दोषैर्न लिप्यते।
गर्भिणी जीववत्सा स्यात्पुत्रिणी स्यान्न संशयः॥१२॥
भूर्जपत्रे त्विमां विद्यां लिखित्वा गन्धचन्दनैः।
एतैर्दोषैर्न लिप्येत सुभगा पुत्रिणी भवेत्॥१३॥
रणे राजकुले द्यूते नित्यं तस्य जयो भवेत्।
शस्त्रं वारयते ह्येषा समरे काण्ड़दारुणे॥१४॥
गुल्मशूलाक्षिरोगाणां क्षिप्रं नाश्यति च व्यथाम।
शिरोरोगज्वराणां न नाशिनी सर्वदेहिनां॥१५॥
इत्येषा कथिता विद्या अभयाख्या अपराजिता।
एतस्याः स्मृतिमात्रेण भयं क्वापि न जायते॥१६॥
नोपसर्गा न रोगाश्च न योधा नापि तस्कराः।
न राजानो न सर्पाश्च न द्वेष्टारो न शत्रवः॥१७॥
यक्षराक्षसवेताला न शाकिन्यो न च ग्रहाः।
अग्नेर्भयं न वाताच्च न स्मुद्रान्न वै विषात॥१८॥
कार्मणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च।
उच्चाटनं स्तम्भनं च विद्वेषणमथापि वा॥१९॥
न किञ्चित्प्रभवेत्तत्र यत्रैषा वर्ततेऽभया।
पठेद वा यदि वा चित्रे पुस्तके वा मुखेऽथवा॥२०॥
हृदि वा द्वारदेशे वा वर्तते ह्यभयः पुमान।
हृदये विन्यसेदेतां ध्यायेद्देवीं चतुर्भुजां॥२१॥
रक्तमाल्याम्बरधरां पद्मरागसम्प्रभां।
पाशांकुशाभयवरैरलंकॄतसुविग्रहां॥२२॥
साधकेभ्यः प्रयच्छन्तीं मंत्रवर्णामृतान्यपि।
नातः परतरं किञ्चिद्वशीकरणमनुत्तमं॥२३॥
रक्षणं पावनं चापि नात्र कार्या विचारणा।
प्रातः कुमारिकाः पूज्याः खाद्यैराभरणैरपि।
तदिदं वाचनीयं स्यात्तत्प्रिया प्रियते तु मां॥२४॥
ॐ अथातः संप्रवक्ष्यामि विद्यामपि महाबलां।
सर्वदुष्टप्रशमनीं सर्वशत्रुक्षयङ्करीं॥२५॥
दारिद्रदुखशमनीं दौर्भाग्यव्याधिनाशिनिं ।
भूतप्रेतपिशाचानां यक्षगन्धर्वरक्षसां॥२६॥
डाकिनी शाकिनी स्कन्द कूष्माण्डानां च नाशिनिं।
महारौद्रिं महाशक्तिं सद्यः प्रत्ययकारिणीं॥२७॥
गोपनीयं प्रयत्नेन सर्वस्वं पार्वतीपतेः।
तामहं ते प्रवक्ष्यामि सावधानमनाः श्रुणु॥२८॥
एकाह्निकं ध्वह्निकं च चातुर्थिकार्द्धमासिकं।
द्वैमासिकं त्रैमासिकं तथा चातुर्थमासिकं॥२९॥
पाँचमासिकं षाङ्गमाँसिकं वातिक पैत्तिकज्वरम्।
श्लैष्पिकं सात्रिपातिकं तथैव सततजवरं॥३०॥
मौहूर्तिकं पैत्तिकं शीतज्वरं विषमज्वरं।
द्वहिन्कं त्र्यह्निकं चैव ज्वरमेकाह्निकं तथा।
क्षिप्रं नाशयेते नित्यं स्मरणादपराजिता॥३१॥
ॐ ह्रं हन हन कालि शर शर गौरि धम धम विद्ये आले ताले माले गन्धे बन्धे पच पच विद्ये नाशय नाशय पापं हर हर संहारय वा दुःस्वप्नविनाशिनी कमलस्थिते विनायकमातः रजनि संध्ये दुन्दुभिनादे मानसवेगे शङ्खिनी चक्रिणी गदिनी वज्रिणी शूलिनी अपमृत्युविनाशिनी विश्वेश्वरी द्रविड़ी द्राविड़ी द्रविणि द्राविणी केशवदयिते पशुपतिसहिते दुन्दुभिदमनी दुर्म्मददमनी शबरि किराती मातङ्गी ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु।
ये मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान सर्वान दम दम मर्दय मर्दय तापय तापय गोपय गोपय पातय पातय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय ब्रह्माणि ब्रह्माणि माहेश्वरि कौमारि वाराहि नारसिंही ऐन्द्रि चामुण्डे महालक्ष्मी वैनायिकी औपेन्द्री आग्नेयी चण्डी नैऋति वायव्ये सौम्ये ऐशानि ऊर्ध्वमधोरक्ष प्रचण्डविद्ये इंद्रोपेन्द्रभगिनि।
ॐ नमो देवि जये विजये शान्ति स्वस्ति तुष्टि पुष्टि विवर्द्धिनि कामांकुशे कामदुघे सर्वकामवरप्रदे।
सर्वभूतेषु मां प्रियं कुरु कुरु स्वाहा।
आकर्षणि आवेशनि ज्वालामालिनी रमणि रमणि धरणी धारिणी तपनि तापिनी मदनि मादिनी शोषणी सम्मोहिनि।
नीलपताके महानीले महागौरि महाश्रिये।
महाचान्द्री महासौरि महामायूरी आदित्यरश्मि जाह्नवि।
यमघण्टे किणी किणी चिंतामणि।
सुगन्धे सुरभे सुरासुरोत्पन्ने सर्वकामदुघे।
यद्यथा मनीषितं कार्यं तन्मम सिद्धतु स्वाहा।
ॐ स्वाहा। ॐ भूः स्वाहा। ॐ भुवः स्वाहा। ॐ स्वः स्वाहा। ॐ महः स्वाहा। ॐ जन: स्वाहा। ॐ तपः स्वाहा। ॐ सत्यं स्वाहा। ॐ भूर्भुवः स्वाहा।
यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छतु स्वाहेत्यो।
अमोघैषा महाविद्या वैष्णवी चापराजिता॥३२॥
स्वयं विष्णुप्रणीता च सिद्धेयं पाठतः सदा।
एषा महाबला नाम कथिता तेऽपराजिता॥३३॥
नानया सदृशी रक्षा त्रिषु लोकेषु विद्यते।
तमोगुणमयी साक्षद्रौद्री शक्तिरियं मता॥३४॥
कृतान्तोपि यतो भीतः पादमूले व्यवस्थितः।
मूलाधारे न्यसेदेतां रात्रावेन च संस्मरेत॥३५॥
नीलजीतमूतसङ्काशां तडित्कपिलकेशिकां।
उद्यदादित्यसंकाशां नेत्रत्रयविराजिताम॥३६॥
शक्तिं त्रिशूलं शङ्खं च पानपात्रं च बिभ्रतीं।
व्याघ्रचर्मपरिधानां किङ्किणीजालमण्डितं॥३७॥
धावंतीं गगनस्यान्तः पादुकाहितपादकां।
दंष्ट्राकरालवदनां व्यालकुण्डलभूषितां॥३८॥
व्यात्तवक्रां ललजिह्वां भुकुटीकुटिलालकां।
स्वभक्तद्वेषिणां रक्तं पिबन्तीं पानपात्रतः॥३९॥
सप्तधातून शोषयन्तीं क्रूरदृष्टया विलोकनात।
त्रिशूलेन च तज्जिह्वां कीलयंतीं मुहुर्मुहुः॥४०॥
पाशेन बद्धा तं साधमानवंतीं तदन्तिके।
अर्द्धरात्रस्य समये देवीं धायेन्महाबलां॥४१॥
यस्य यस्य वदेन्नाम जपेन्मंत्रं निशांतके।
तस्य तस्य तथावस्थं कुरुते सापियोगिनी॥४२॥
ॐ बले महाबले असिद्धसाधनी स्वाहेति।
अमोघां पठति सिद्धां श्रीवैष्णवीं॥४३॥
श्रीमद्पाराजिताविद्यां ध्यायेत।
दुःस्वप्ने दुरारिष्टे च दुर्निमित्ते तथैव च।
व्यवहारे भवेत्सिद्धिः पठेद्विघ्नोपशान्तये॥४४॥
यदत्र पाठे जगदम्बिके मया विसर्गबिन्द्वऽक्षरहीनमीड़ितं।
तदस्तु सम्पूर्णतमं प्रयान्तु में सङ्कल्पसिद्धिस्तु सदैव जायतां॥४५॥
ॐ तव तत्त्वं न जानामि कीदृशासि महेश्वरि।
यादृशासि महादेवी तादृशायै नमो नमः॥४६॥
॥ श्री दुर्गार्पणं अस्तु ॥
ध्यातव्य तथ्य
➤ श्री त्रैलोक्य विजया अपराजिता स्तोत्रम् को निरन्तर एक महीने तक प्रतिदिन तीनो काल जपने से कार्य अवश्य ही सफल होता है ।
➤ श्री त्रैलोक्य विजया अपराजिता स्तोत्रम् का पुरश्चरण १२०० है।
➤ श्री त्रैलोक्य विजया अपराजिता स्तोत्रम् का प्रतिदिन १२० पाठ करें ।
➤ जो कि दस दिन में समाप्त हो जायेगा पश्चात् प्रतिदिन तीन पाठ करें ।
➤ श्री त्रैलोक्य विजया अपराजिता स्तोत्रम् का पाठ रात्रि के १० बजे से लेकर १ बजे तक की समय अवधि में करना चाहिए ।
➤ माँ दुर्गा की प्रतिमा के समक्ष या श्रीयंत्र के समक्ष गोघृत दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।
➤ नित्य पूर्व दिशा की ओर सिर करके भुमि पर शयन करें।
➤ नित्य ब्रह्ममुहूर्त में जागरण करके दैनिक शौचादि क्रियाओं से निवृत्त होकर, स्नान करके भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य देवें।
➤ प्रतिदिन ठीक निर्धारित समय पर ही पाठ करें।
➤ अनुष्ठान की पूर्णता के लिए संभव हो तो प्रतिदिन उपवास रखें, यदि व्रत संभव न हो तो एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करें।
➤ प्रथम दिवस साबुत समूची गोल सुपारी, एक सिक्का कुंकुम से रंगे हुए अक्षत, लाल पुष्पादि को लेकर अनुष्ठान का संकल्प धारण करके , संकल्पित सामग्री को लाल रंग के वस्त्र में लपेट कर लाल रेशमी धागे से बांधकर रखना चाहिए अनुष्ठान की पूर्णता उपरांत वह पोटली अपने शयनकक्ष में ईशान कोण में रखना चाहिए।
➤ स्तोत्र का पाठ कुशासन पर बैठकर करना चाहिए।
➤ प्रतिदिन अनुष्ठान प्रारम्भ करने के पूर्व एक माला श्री गणेश मन्त्र “ॐ गं गणपतये नमः” की जपना चाहिए तथा एक माला अपने गुरु मन्त्र की जपना चाहिए।
➤ जप के समय कड़ुआ तेल अथवा गौघृतयुक्त का दीपक तथा धूपबत्ती प्रज्वलित करना चाहिए।
➤ साधक/साधिका को लाल अथवा पीले रंग के वस्त्र धारण करके जप करना चाहिए।
➤ अनुष्ठान के पूर्व में प्रतिदिन माँ दुर्गा का पञ्चोपचार पूजन करें, लाल पुष्प, शहद तथा नैवेद्य के रूप में लाल रंग का मिष्ठान्न निवेदित करें।
➤ अनुष्ठान के दौरान, ब्रह्मचर्य का पालन करें, सत्य का आचरण करें तथा सभी प्रकार के दुष्कृत्य (छल, दंभ, द्वेष, पाखण्ड, झूठ, काम, क्रोध, लोभ, मोह इत्यादि) से बचने का प्रयास करें।
➤ पाठ के अन्त में प्रतिदिन, आरती एवं क्षमा प्रार्थना अवश्य करें।
➤ १२००० की संख्या में पाठ पूर्ण करके उसी स्तोत्र द्वारा दशांश (१२००) होम, दशांश (१२०) तर्पण, दशांश (१२) मार्जन तथा दशांश (१.१) ब्राह्मण भोजन अवश्य करायें एवं यथाशक्ति श्रद्धानुसार दान दक्षिणा देवें।
॥ श्रीरस्तु ॥
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श्री हरि हरात्मक देवें सदा, मुद मंगलमय हर्ष।
सुखी रहे परिवार संग, अपना भारतवर्ष॥
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┉ संकलनकर्ता ┉
श्रद्धेय पंडित विश्वनाथ प्रसाद द्विवेदी
‘सनातनी ज्योतिर्विद’
संस्थापक, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
(‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष)
संपर्क सूत्र – 07089434899
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