चैत्रीय नवरात्र में घटस्थापना मुहूर्त संबंधित विधि सहित घटस्थापना के अति आवश्यक नियम
❀꧁ “ॐ हरि हर नमो नमःॐ” ꧂❀
कलश स्थापना प्रतिपदा अर्थात नवरात्रि के पहले दिन देवी शक्ति की पूजा के साथ की जाती है। यदि यह पूजन शुभ मुहूर्त में संपन्न न हो, तो देवी अप्रसन्न हो जाती हैं।
चैत्र नवरात्र घटस्थापना मुहूर्त एवं नियम
घटस्थापना को कलशस्थापना के नाम से भी जाना जाता है। आपको ऐसे अनेक स्रोत मिलेंगे, जो घटस्थापना करने हेतु चौघड़िया मुहूर्त पर विचार करने की सलाह देते हैं, किन्तु हमारे शास्त्र चौघड़िया मुहूर्त में घटस्थापना का सुझाव नहीं देते हैं।
सभी प्रामाणिक स्रोतों पर शोध करते हुए तथा केवल उन्हीं नियमों का पालन करना चाहिए जो वैदिक ग्रन्थों में भली प्रकार से वर्णित हैं। हालाँकि, यदि आप चौघड़िया मुहूर्त चुनना चाहते हैं, तो आप इसे चुन सकते हैं।
किन्तु हम इसे घटस्थापना के लिये उपयोग करने की अनुशंसा नहीं करते हैं। बल्कि लग्न पर भी विचार करते हुए तथा गणना किये गये मुहूर्त में द्वि स्वभाव लग्न को सम्मिलित करने का प्रयास करना चाहिए।
मध्याह्नकाल, रात्रिकाल तथा सूर्योदय के उपरान्त सोलह घटी के पश्चात् का कोई भी समय घटस्थापना के लिये वर्जित होता है।
सूर्योदय के बाद यदि एक भी मुहूर्त प्रतिपदा में पड़ रहा है तो उसी दिन की सुबह से ही नवरात्रि शुरू होगी और कलश स्थापना या घटस्थापना की जाएगी।
यदि सूर्योदय के बाद प्रतिपदा एक मुहूर्त से कम हो और बाक़ी किसी दिन न हो, तब ऐसी स्थिति में अमायुक्त प्रतिपदा को पहला दिन माना जाएगा।
किसी दूसरी स्थिति में अमायुक्त प्रतिपदा में चैत्र नवरात्रि आरंभ करना निषिद्ध माना गया है। यदि प्रतिपदा दो दिनों के सूर्योदय में पड़ रही है तो पहले दिन का मान्य होगा, दूसरे दिन त्यौहार की शुरुआत करना वर्जित है।
यदि पहले दिन देवी चण्डिका की पूजा करनी हो तो अमायुक्त प्रतिपदा में नहीं करनी चाहिए। ऐसी स्थिति में दूसरे दिन में पड़ रही प्रतिपदा मान्य होगी।
घटस्थापना का सबसे उत्तम समय दिन का पहला एक तिहाई हिस्सा है। किसी दूसरी स्थिति में अभिजीत मुहूर्त सबसे उत्तम माना गया है।
चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग की अवधि में घटस्थापना करने से बचना चाहिए, पर यह समय पूरी तरह से वर्जित नहीं है।
किसी भी परिस्थिति में घटस्थापना हिन्दू समय के अनुसार प्रतिपदा तिथि के दिन के मध्य से पहले होनी चाहिए।
चैत्र नवरात्रि में प्रतिपदा की सुबह द्वि-स्वभाव लग्न मीन होता है, इस अवधि में भी घटस्थापना करना शुभ माना गया है।
घटस्थापना के लिए शुभ नक्षत्र हैं: पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद, हस्त, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूल, श्रवण, धनिष्ठा और पुनर्वसु।
सूर्योदय होने से १६ घटी के बाद घटस्थापना का कार्य वर्जित है। दूसरे शब्दों में कहें तो घटस्थापना हिन्दू समय के अनुसार प्रतिपदा के दिन के मध्य से पहले होनी चाहिए।
घटस्थापना के लिए आवश्यक सामग्री
श्रीफल, हल्दी चूर्ण, कुंकुम, अबीर, गुलाल, सिन्दूर, चन्दन, सुपारी (समूची), हल्दी (समूची), चौड़े मुँह वाला मिट्टी का एक बर्तन, पवित्र स्थान की मिट्टी, सप्तधान्य, कलश, जल (संभव हो तो गंगाजल), कलावा/मौली, आम, बरगद, पीपल, ऊपर तथा अशोक के पत्ते (पञ्चपल्लव), अक्षत (कच्चा साबुत चावल), लाल वस्त्र, पुष्प और पुष्पमाला, मिष्ठान्न इत्यादि।
घटस्थापना विधि
पवित्र मिट्टी को चौड़े मुँह वाले मिट्टी के बर्तन में रखकर उसमें सप्तधान्य बोएँ।
अब उसके ऊपर कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग में कलावा बाँधें।
आम या अशोक के पल्लव को कलश के ऊपर रखें।
अब श्रीफल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर और पल्लव के बीच में रखें।
श्रीफल में भी कलावा बाँधे।
घटस्थापना पूर्ण होने के बाद देवी का आह्वान करते हैं।
(आपकी इच्छानुसार वैदिक विधि द्वारा घट स्थापन हेतु विद्वान ब्राह्मण का भी सहयोग ले सकते हैं)
पूजा संकल्प मंत्र
९ दिनों तक व्रत रखने वाले भक्तों को निम्नलिखित मंत्र के साथ पूजा का संकल्प करना चाहिए
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविशतितमे युगे कलियुगे कलिप्रथमचणे भूर्लोके भारतवर्षे जम्बूद्विपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तस्य अमुक प्रदेश अमुक मण्डलान्तर्गते अमुक क्षेत्रे अमुक जनपदे अमुक ग्रामे नगरे देवद्विजगवां चरण सन्निधावास्मिन् श्रीमन्नृपतिवीरविक्रमादित्य समयतो ….…. संख्या परिमिते प्रवर्त्तमानसंवत्सरे प्रभवादिषष्ठि -संवत्सराणां मध्ये ….…. नामसंवत्सरे, श्री सूर्य ….…. यायने, ….…. ऋतौ, महामांङ्गल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे ….…. मासे, ….…. पक्षे, ….…. तिथौ, ….…. वासरे, ….…. नक्षत्रे, ….…. योगे, ….…. करणे, ….…. राशिस्थिते चन्द्रे, ….…. राशिस्थितेश्रीसूर्ये, ….…. राशिस्थिते देवगुरौ शेषेशु ग्रहेषु यथायथा राशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ ….…. गोत्रोत्पन्नस्य ….…. शर्मणः(वर्मणः, गुप्तस्य वा) अहं नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु ममोपात्तदुरितक्षयपूर्वक अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुक मनोकामना सिद्धयर्थे भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये।
ध्यातव्य : मंत्र का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए। इस मंत्र में कई जगह अमुक शब्द आया है। जैसे- अमुकनामसम्वत्सरे, यहाँ पर आप अमुक की जगह संवत्सर का नाम उच्चारित करेंगे। ठीक ऐसे ही अमुकवासरे में उस दिन का नाम, अमुकगोत्रः में अपने गोत्र का नाम और अमुकनामाहं में अपना नाम उच्चारित करें।
यदि पहले, दूसरे, तीसरे आदि दिनों के लिए उपवास रखा जाए, तब ऐसी स्थिति में ‘एतासु नवतिथिषु’ की जगह उस तिथि के नाम के साथ संकल्प किया जाएगा जिस तिथि को उपवास रखा जा रहा है। जैसे – यदि सातवें दिन का संकल्प करना है, तो मंत्र इस प्रकार होगा।
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविशतितमे युगे कलियुगे कलिप्रथमचणे भूर्लोके भारतवर्षे जम्बूद्विपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तस्य अमुक प्रदेश अमुक मण्डलान्तर्गते अमुक क्षेत्रे अमुक जनपदे अमुक ग्रामे नगरे देवद्विजगवां चरण सन्निधावास्मिन् श्रीमन्नृपतिवीरविक्रमादित्य समयतो ….…. संख्या परिमिते प्रवर्त्तमानसंवत्सरे प्रभवादिषष्ठि -संवत्सराणां मध्ये ….…. नामसंवत्सरे, श्री सूर्य ….…. यायने, ….…. ऋतौ, महामांङ्गल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे ….…. मासे, ….…. पक्षे, ….…. तिथौ, ….…. वासरे, ….…. नक्षत्रे, ….…. योगे, ….…. करणे, ….…. राशिस्थिते चन्द्रे, ….…. राशिस्थितेश्रीसूर्ये, ….…. राशिस्थिते देवगुरौ शेषेशु ग्रहेषु यथायथा राशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ ….…. गोत्रोत्पन्नस्य ….…. शर्मणः(वर्मणः, गुप्तस्य वा) अहं नवरात्रपर्वणि सप्तम्यां तिथौ ममोपात्तदुरितक्षयपूर्वक अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुक मनोकामना सिद्धयर्थे भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये।
ऐसे ही अष्टमी तिथि के लिए सप्तम्यां की जगह अष्टम्यां तिथौ का उच्चारण होगा।
षोडशोपचार पूजा के लिए संकल्प
यदि नवरात्रि के दौरान षोडशोपचार पूजा करनी हो तो नीचे दिए गए मंत्र से प्रतिदिन पूजा का संकल्प करें :
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविशतितमे युगे कलियुगे कलिप्रथमचणे भूर्लोके भारतवर्षे जम्बूद्विपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तस्य अमुक प्रदेश अमुक मण्डलान्तर्गते अमुक क्षेत्रे अमुक जनपदे अमुक ग्रामे नगरे देवद्विजगवां चरण सन्निधावास्मिन् श्रीमन्नृपतिवीरविक्रमादित्य समयतो ….…. संख्या परिमिते प्रवर्त्तमानसंवत्सरे प्रभवादिषष्ठि -संवत्सराणां मध्ये ….…. नामसंवत्सरे, श्री सूर्य ….…. यायने, ….…. ऋतौ, महामांङ्गल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे ….…. मासे, ….…. पक्षे, ….…. तिथौ, ….…. वासरे, ….…. नक्षत्रे, ….…. योगे, ….…. करणे, ….…. राशिस्थिते चन्द्रे, ….…. राशिस्थितेश्रीसूर्ये, ….…. राशिस्थिते देवगुरौ शेषेशु ग्रहेषु यथायथा राशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ ….…. गोत्रोत्पन्नस्य ….…. शर्मणः(वर्मणः, गुप्तस्य वा) अहं नवरात्रपर्वणि अद्य दिवसे ममोपात्तदुरितक्षयपूर्वक अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुक मनोकामना सिद्धयर्थे भगवत्याः दुर्गायाः षोडशोपचार पूजजनम् विधास्ये।
॥ श्रीरस्तु ॥
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श्री हरि हरात्मक देवें सदा, मुद मंगलमय हर्ष।
सुखी रहे परिवार संग, अपना भारतवर्ष॥
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┉ संकलनकर्ता ┉
श्रद्धेय पंडित विश्वनाथ प्रसाद द्विवेदी
‘सनातनी ज्योतिर्विद’
संस्थापक, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
(‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष)
संपर्क सूत्र – 07089434899
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